श्रीनगर 15 अक्टूबर। हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल यूनिवर्सिटी, श्रीनगर गढ़वाल के भू-विज्ञान विभाग,द्वारा 15-17 अक्टूबर तक अकादमिक एक्टिविटी सेंटर, चौरास परिसर में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित “डी-आइस प्रोजेक्ट” कार्यशाला आयोजित की जा रही है। इस कार्यशाला में यूनिवर्सिटी ऑफ जूरिख, ग्राज़े यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी, ऑस्ट्रिया, इंस्टिट्यूट ऑफ मैथमेटिकल साइंस, चेन्नई, आइज़र पुणे, आईआईटी बॉम्बे, जेआईवाईएस कोलकाता, भूगर्भ विभाग के संकाय सदस्य, भौतिकी विभाग और भूगोल विभाग के संकाय सदस्य एवं शोध छात्र प्रतिभाग कर रहे हैं।
हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल यूनिवर्सिटी के भूगर्भ विभाग संकाय के अध्यक्ष प्रोफेसर एच.सी. नैनवाल और डी-आइस प्रोजेक्ट के मुख्य अन्वेषक प्रोफेसर एम.पी.एस. बिष्ट ने कार्यशाला के बारे में विस्तार से बताया कि डी-आइस प्रोजेक्ट देश-विदेश के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर शोध कर रहा है। सोमवार को कार्यशाला की शुरुआत प्रोफेसर एम.पी.एस. बिष्ट, भूगर्भ विभाग के विभागाध्यक्ष ने अतिथियों के स्वागत से किया ।
कार्यशाला में प्रोफेसर आंद्रेआस वैली, डॉ. माइल्स और फ्लोरियन हार्डमिएर (यूनिवर्सिटी ऑफ जूरिख), डॉ. टोबियास बलोच (ग्राज़े यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी, ऑस्ट्रिया), प्रोफेसर आर. शंकर (इंस्टिट्यूट ऑफ मैथमेटिकल साइंस, चेन्नई), प्रोफेसर अरघा बनर्जी (आइज़र पुणे), डॉ. भारत शेखर (आईआईटी बॉम्बे), डॉ. अतनु भट्टाचार्य (जेआईवाईएस कोलकाता) और गढ़वाल यूनिवर्सिटी से भूगर्भ विभाग के संकाय अध्यक्ष प्रोफेसर एच.सी. नैनवाल, डी-आइस प्रोजेक्ट के मुख्य अन्वेषक प्रोफेसर एम.पी.एस. बिष्ट, डॉ. एम.वाई. सती (डी-आइस प्रोजेक्ट के सह-अन्वेषक और भूगर्भ विभाग के संकाय सदस्य), डॉ. आलोक सागर गौतम (डी-आइस प्रोजेक्ट के सह-अन्वेषक और भौतिकी विभाग के संकाय सदस्य), प्रोफेसर एन.के. मीणा, डॉ. अनिल शुक्ला (भूगर्भ विभाग के संकाय सदस्य), डॉ. राकेश सैनी (भूगोल विभाग के संकाय सदस्य), प्रोजेक्ट वैज्ञानिक और शोध छात्र उषेश त्रिपाठी, शुभम मिश्रा, डॉ. सुनील सिंह शाह तथा भूगर्भ विभाग के छात्र-छात्राएं प्रतिभाग कर रहे हैं।
सम्मेलन का मुख्या उद्देश्य ग्लेशियरों पर होने वाले प्रभावों, जैसे जलवायु परिवर्तन, और उनके भीतर होने वाले देवरिस (पिघले हुए पानी, बर्फ, और अन्य सामग्री) की सांद्रता का अध्ययन करना है। इसके साथ ही, ग्लेशियर की गतिकी को समझना भी महत्वपूर्ण है, ताकि हम उनके बदलाव को बेहतर तरीके से समझ सकें। कार्यशाला में निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान दिया जाएगा:
1) ग्लेशियरों का गठन और संरचना: ग्लेशियरों के निर्माण की प्रक्रिया और उनकी संरचना का अध्ययन।
2) जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: ग्लेशियरों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की चर्चा, जैसे पिघलने की दर में वृद्धि।
3) देवरिस की सांद्रता: ग्लेशियरों में देवरिस के घटकों का अध्ययन, उनकी सांद्रता और पर्यावरणीय प्रभाव।
4) ग्लेशियर की गतिकी: ग्लेशियरों के आंदोलन, गति और प्रवाह की प्रक्रिया का विश्लेषण।
क्या है डेब्रीस आइस प्रोजेक्ट (Debris Ice Project)?
यह परियोजना भूगर्भ विभाग के संकाय अध्यक्ष प्रोफेसर एच.सी. नैनवाल, डी-आइस प्रोजेक्ट के मुख्य अन्वेषक, डॉ एम् यस सती , डी -आइस प्रोजेक्ट के सह अन्वेषक और भू गर्भ विभाग के संकाय सदस्य , डॉ आलोक सागर गौतम डी -आइस प्रोजेक्ट के सह अन्वेषक औरभौतिकी विभाग के संकाय सदस्य द्वारा संचालित प्रोजेक्ट जिसका उद्देश्य मलबे से ढके ग्लेशियरों की गतिशीलता और विशेषताओं को समझना है। इस परियोजना के कुछ मुख्य पहलू इस प्रकार हैं:
1) मलबे का प्रभाव: अध्ययन करना कि मलबा ग्लेशियर के पिघलने की दर, प्रवाह की गतिशीलता, और तापीय स्थिति पर कैसे प्रभाव डालता है।
2) मलबे की विशेषताएँ: ग्लेशियरों पर मलबे के आकार, संरचना और वितरण का विश्लेषण करना।
3) जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: यह मूल्यांकन करना कि बदलते जलवायु की स्थितियाँ मलबे से ढके ग्लेशियरों को कैसे प्रभावित करती हैं।
हिंदुकुश और हिमालय पर्वतमाला एशिया की दो प्रमुख पर्वत श्रृंखलाएँ हैं, जिनमें महत्वपूर्ण ग्लेशियर हैं। इन ग्लेशियरों का जलवायु, पारिस्थितिकी और स्थानीय जल संसाधनों पर अत्यधिक महत्व है। यह इंडो-स्विस डी-आइस प्रोजेक्ट कार्यशाला उत्तराखंड के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
विश्व में आ रहे वातावरण के प्रभाव एवं हिमनदों के अचानक ग्लोफ जैसी घटनाओं से आम जनमानस को बचाने के लिए चर्चा की गई। यूरोप के बुग्यालों के साथ-साथ हिमालयन बुग्यालों में हो रहे परिवर्तनों के बारे में गहन चर्चा कर वैज्ञानिकों ने चिंता व्यक्त की है।