गोपेश्वर 17 नवंबर । बद्रीनाथ धाम के कपाट आज यानी रविवार रात नौ बजकर सात मिनट पर शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाएंगे। रविवार को कपाट बंद होने से पहले भक्तों की भीड़ उमड़ पडी, आज लगभग 10 हजार श्रद्धालुओं ने भगवान बद्री बिशाल के दर्शन किए। इसके साथ ही उत्तराखंड के चारधाम – गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ – सभी धामों के कपाट शीतकाल के लिए बंद हो जायेंगे । इसके साथ ही 2024 की चारधाम यात्रा समाप्त हो जाएगी । गंगोत्री के कपाट सबसे पहले 2 नवंबर को बंद हुए , इसके बाद यमुनोत्री और केदारनाथ के कपाट 3 नवंबर को भाई दूज के दिन बंद किए गए। रुद्रनाथ 17 अक्टूबर को और तुंगनाथ 4 नवंबर को बंद किया गया और मध्यमहेश्वर 20 नवंबर को बंद होगा। केदारनाथ के रक्षक देवता भकुंटा भैरवनाथ के कपाट 29 अक्टूबर को बंद कर दिए गए।
इस साल अब तक 14 लाख 20 हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने भगवान बदरी विशाल के दर्शन किए । बदरीनाथ मंदिर के कपाट बंद होने की परंपरा के अनुसार रावल अमरनाथ नंबूदरी स्त्री का भेष धारण कर माता लक्ष्मी को श्री बदरीनाथ मंदिर के गर्भगृह में विराजमान करते हैं। पुजारी स्त्री भेष इसलिए धारण करते हैं कि लक्ष्मी जी की सखी के रुप में उन्हें गर्भगृह तक लाया जा सके। मान्यता है कि शीतकाल में बदरीनाथ धाम में देवताओं की ओर से मुख्य अर्चक नारद जी होते हैं। बदरीनाथ जी के कपाट बंद होने की पंच पूजाएं रावल अमरनाथ नंबूदरी, धर्माधिकारी राधाकृष्ण थपलियाल, वेदपाठी रविंद्र भट्ट द्वारा संपन्न कराई गईं।
बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने से पहले की जाती हैं ये पांच पूजाएं
बुधवार को कपाट बंद होने की प्रक्रिया शुरु की गई।
पंचपूजाओं के तहत पहले दिन गणेश जी की पूजा अर्चना की गई। सायं को गणेश मंदिर के कपाट भी शीतकाल के लिए बंद किए गए।
14 नवंबर को नारायण मंदिर के सामने आदिकेदारेश्वर मंदिर व शंकराचार्य मंदिर के कपाट भी विधि विधान से बंद कर दिए गए।
15 नवंबर को खड़क पुस्तक पूजन के साथ बदरीनाथ मंदिर में वेद ऋचाओं का वाचन बंद हुआ।
16 नवंबर को मां लक्ष्मी की कढ़ाई भोग चढ़ाया गया।
आज 17 नवंबर को भगवान नारायण के कपाट शीतकाल के लिए बंद किए जाएंगे।