दोनों ने काली कमाई के जरिये बनाई 300 से 400 करोड़ की बेनामी संपत्ति
नई दिल्ली 28 मई । उत्तराखंड के विकास और प्रगति को भ्रष्टाचार और घोटालों की काली कमाई दीमक की तरह चट कर रही है,इसका ज्वलंत उदाहरण है ऊर्जा प्रदेश कहलाने वाले देवभूमि उत्तराखंड का ऊर्जा निगम यानि यूपीसीएल । जहाँ यूपीसीएल के एमडी और निदेशक ने विगत तीस साल में अपनी आय से अधिक संपत्ति अर्जित की है, और वो भी करोड़ों में। इस बात का खुलाशा मंगलवार को दिल्ली के कंस्टीटूशन क्लब में लेबर वेलफेयर फाउंडेशन ने की। उन्होंने बताया कि किस तरह से यूपीसीएल के बर्तमान एमडी अनिल कुमार व सहायक अजय अग्रवाल ने करोड़ों की बेनामी संपत्ति अर्जित की।
लेबर वेलफेयर फाउंडेशन के एडवोकेट सुनील कुमार गुप्ता ने बताया कि किस तरह से यूपीसीएल में जिम्मेवार पदों बैठे एमडी और निदेशक (परियोजना) किस तरह से करोड़ों-करोडो के घोटालों एवं भ्रष्टाचार को खुलेआम अंजाम दे रहे हैं, इनके खिलाफ शासन स्तर पर जांच हुई लेकिन उसके बाद भी दंडात्मक कार्यवाही आज भी लंबे समय से ठंडे बस्ते में पड़ी हुई है। आखिर कौन है जो इन दोनों को बचा रहा है ? AJAY उन्होंने कहा कि इनकी दबंगई और ताकत का अंदाजा बड़ी आसानी से लगाया जा सकता है। इन दोनों अधिकारियों ने करोड़ों की काली कमाई से पचास से अधिक नामी बेनामी सम्पत्तयों का विशाल एम्पायर तैयार किया है। जिन्हे इन्होने अलग अलग नाम से खरीद फरोख्त किया ताकि काले कारनामे छिपे हैं। सम्पत्तियों की खरीद में पत्नी को कई जगह कागजों बेटी के रूप में पेश किया गया है।
आय से अधिक संम्पति का मामला : काली कमाई का सच, कैसे बने करोड़ों की सम्पत्तियों के एम्पायर ?
यूपीसीएल (उत्तराखंड यावर कारपोरेशन लिमिटेड) के वर्तमान एमडी अनिल कुमार जो उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद में वर्ष 1987-88 में सहायक अभियन्ता के पद पर सरकारी सेवा में आए, उत्तराखंड राज्य निर्माण के बाद से अब तक यूपीसीएल और पिटकुल में मुख्य अभियंता स्तर-१ तक सेवारत हैं तथा तीन चार माह में सेवानिवृत्त होने वाले हैं। गुप्ता ने ये भी बताया कि अनिल कुमार रिटायर होने वाले हैं, और इस जुगत में हैं कि रिटायरमेंट के बाद भी उन्हें यूपीसीएल में कोई पद मिल जाए।
उन्होंने कहा कि अगर अनिल कुमार की 35 वर्षों का औसत वेतन एक लाख रुपये प्रतिमाह भी रहा हो तो भी अब तक की कमाई और धन संग्रह (बचत) सहित चार से पांच करोड़ से अधिक नहीं हो सकती, वह भी तब जबकि पूरा वेतन बचा लिया गया हो, और परिवार का रहना खाना, पीना आदि सब खर्च किसी दूसरे के सिर पर हो तो भी अब तक यह रकम और चल-अचल सम्पत्ति चार से पाच करोड़ की ही होनी चाहिए। परंतु यहा तो भ्रष्टाचारी ने लगभग डेढ़ सौ करोड़ से 200 करोड़ की सम्पत्तिया बना ली हैं जो अभी तक सामने आई है,ये उन्होंने कहाँ से और कैसे जुटाली?
दूसरी तरफ इनके साथी सहायक अजय अग्रवाल की भी कमोवेश यही स्थिति है अर्थात इन दोनों ने लगभग दो सौ करोड़ से अधिक सम्पत्तियाँ कहां से और कैसे जुटाई ? इन्होने इस अकूत संपत्ति में अपने परिजनों के नाम का तो प्रयोग मनमाने ढंग से किया है। इसका तरीका आश्चर्यचकित कर देने वाला है। दोनों ने सेवा नियमावली का भी जमकर उलंघन किया बल्कि बिना अनुमति के ही सम्पत्तियो एम्पायर बना लिया।
दोनों ने अपनी सम्पतियों की जो घोषणा अपने निगम में की है उसमे सरासर झूठ बोलने से भी संकोच नहीं किया। उन्होंने निगम को अपनी सम्पति का जो ब्योरा दिया है उसमे देहरादून की मात्र चार और लखनऊ की तीन सम्पत्तियों का जिक्र किया है। यह लिखितनामा उन्होंने दिनाक 11-05-2021 को दिया है। जबकि जनाब ने 35 से 40 बेनामी संपतियों की खरीद फरोख्त की है , दूसरी तरफ अजय अग्रवाल ने भी लगभग 15 से 20 सम्पत्तों की खरीद फरोख्त की है ।
सिलसिला यहीं नहीं रुका वो निरंतर जारी रहा और इन्होंने अपने बेटे – बेटियों व कुवारी पत्नी एवं दामाद, रिश्तेदारी एवं ससुर के नाम से जमीनों की खरीद फरोख्त का कारोबार अब भी जारी है । बेटे यशराज के नाम से किया जा रहा बड़े-बड़े ब्रांड के आधा दर्जन से अधिक शो रूमों को लाखों रुपये प्रतिमाह की लीज पर ऋषिकेश और देहरादून में लिया जाना, तथा उनकी आड़ में काले सफ़ेद के खेल का खेला जाना भी हैरतंगेज है। इनका पुत्र देशराज वर्ष 2015-16 में पिटकुल के ही एक कांट्रेक्टर कम्पनी मैसर्स आशीष ट्रांसपावर में नौकरी कर 40-45 हजार रुपये की सैलरी हासिल कर रहा था। खास बात ये कि उनके अकाउंट में जो सैलरी के नाम से पैसा आता था वह अकाउंट जॉइंट है , बाप और बेटे के नाम से।
इसी प्रकार दामादी और यादव रिश्तेदारों व बुजुर्ग पिता के नाम से देहरादून की महँगी कालोनी पनाश वैली में लाखों और करोड़ों की कीमत को लक्जरी तीन तीन वलैट खरीदने गये हैं। आयकर विभाग व ईडी ,सरकार को धोखा देने के लिए अपने आपको व बेटियों को जौनपुर का व पत्नी को ससुर की पुत्री दिखाकर अनेकों बेशकीमती सम्पतियों का कारोबार किया गया है। इनके घोटाले यही नहीं रुके अपने मूल सेवादायी निगम पिटकुल की पीएसडीएफ और ADB फंडिंग वाली करोड़ों करोड़ों की परियोजनाओ में टेंडर पूलिंग व साठगांठ करके चहेतों को नियमों को ताक पर रखकर किये गए महाघोटाले ।
कॉन्ट्रैक्ट की सारी शर्तों को मनचाहे ढंग से किया वेबऑफ ,यूपीसीएल के चर्चित पावर परचेज प्रकरण पर पूर्व सीएम के FIR के आदेशों की अनदेखी व 20-22 करोड़ की बकाया की क्रियेट पावर से वसूली पर मेहरबानी का राज!
क्या है यूपीसीएल के सैंकड़ों करोड़ के पीर पंजाल और पंचिक कान्ट्रैक्टर के साथ सौदेबाजी न होने और फिर उन्ही कामों को स्क्रैप कर टुकड़ों में टेण्डर अवार्ड किये जाने की कहानी?
यूपीसीएल के द्वारा ऊर्जा प्रदेश के उपभोक्ताओं पर महँगी बिजली खरीद थोपने की खाई बाड़ी का जल विद्युत निगम के साथ मिलकर खेला जाने वाला खेल।
प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद राजसत्ता न्यूज़ ने जब अनिल कुमार से बात की तो उन्होंने बताया कि सभी आरोप फैब्रिकेटेड और झूठ हैं , अभी मेने डॉक्यूमेंट देखे नहीं हैं , में डॉक्यूमेंट देखने के बाद इनके खिलाफ करवाई करूँगा , दूसरी तरफ अजय अग्रवाल ने बात करने से ही इंकार कर दिया और फ़ोन काट दिया।