आग को रोकने में लगातार असफल होता उत्तराखंड प्रशासन और वन विभाग
देहरादून 15 अप्रैल। मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने सोमवार को सचिवालय में राज्य में ग्रीष्मकाल के दौरान जंगलों में आग लगने की घटनाओं को ध्यान में रखते हुए वनाग्नि रोकने की तैयारियो के संबंध में वन विभाग की समीक्षा बैठक ली | बैठक में प्रमुख सचिव आर के सुधांशु सहित वन विभाग के अन्य संबंधित अधिकारी मौजूद थे | मीटिंग में क्या हुआ इसकी जानकारी तो सामने नहीं आ पाई लेकिन ये बात सच है कि पिछले सालों की तुलना में उत्तराखंड के जंगल अधिक जल चुके हैं। इस बात का न तो अधिकारी जिक्र करेंगे और न ही बतानुकूलित कार्यालयों में बैठे वन बिभाग के अधिकारी।
उत्तराखंड में रविवार तक जंगलों में आग लगने की 310 घटनाएं दर्ज हो चुकी हैं। जिसमें 141 मामले गढ़वाल और उतने ही मामले यानि 141 कुमाऊं में दर्ज किये जा चुके हैं जबकि नेशनल पार्कों में आग लगने के 28 मामले दर्ज किये गए हैं , 7 ,86131 रुपये का नुकसान हो चुका है। वनाग्नि से 347.87 हेक्टेअर क्षेत्रफल में वन संपदा को नुकसान पहुंचा है।
ये तय है कि उत्तराखंड के जंगल इस साल पूरी गर्मी में धधकते रहेंगे, आग बुझाने के लिए कोई हेलिकॉप्टर नहीं आएगा । मुख्य वन संरक्षक वनाग्नि एवं आपदा प्रबंधन निशांत वर्मा बताते हैं कि जंगलों की आग पर काबू पाने के लिए हेलिकॉप्टरों से मदद लिए जाने का कोई प्रस्ताव नहीं है, और न ही विभाग को इसकी जरूरत है। सरकार के पास एक विकल्प जरूर है और वो हैं कि सारे अधिकारी लोकसभा चुनावों में व्यस्त हैं , मुख्यमंत्री रैलियों में व्यस्त हैं , अधिकारी उनकी आवाभगत में लगे हैं, रहे कर्मचारी तो वो चुनाव में लगे हैं। बदरीनाथ हाइवे के ऊपरी इलाकों में जंगल धधक रहे हैं, सरकार को चारधाम यात्रा की तो चिंता है लेकिन जलती सम्पदा का नहीं , प्रदेश के नैनीताल,अल्मोड़ा, पौड़ी गढ़वाल , टिहरी, उत्तरकाशी व रुद्रप्रयाग के जंगल लगातार जल रहे हैं लेकिन सुध लेने वाला कोई नहीं है।