राकेश डंडरियाल
देहरादून 14 सितम्बर। उत्तराखंड में एक के बाद एक घोटाले सामने आ रहे हैं, अभी हाल ही में विधानसभा के पटल पर रखी गई वित्तीय वर्ष 2021-22 की वार्षिक लेखा रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि राज्य के विभिन्न विभागों में 18,341 करोड़ की वित्तीय गड़बड़ियां हुई। अधिकारियों की कारगुजारी से सरकार को सीधे तौर पर 2297 करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ। लेकिन डबल इंजन सरकार ने दोषी अधिकारियों को दण्डित करना तो दूर उफ़ तक नहीं की। अब एक और वित्तीय अनियमितता का मामला सामने आया है , विधानसभा के पटल पर रखी गई वित्तीय रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तराखंड के सात सरकारी विश्वविद्यालयों में 134 करोड़ रुपये की वित्तीय अनियमितताएं हुई हैं।
कैसे चल रहा था सिंडिकेट ?
राज्य विधानसभा में पेश की गई रिपोर्ट के अनुसार, विश्वविद्यालय सरकार की अनुमति के बिना शिक्षकों और कर्मचारियों की भर्ती के साथ-साथ सेवा विस्तार भी दे रहे थे। मुक्त विश्वविद्यालय ने बिना पद सृजित किए ही 38 लोगों की नियुक्ति दे दी , जिन्हें 40.58 लाख रुपये का भुगतान किया गया, साथ ही बिना पद सृजित किए एक निश्चित वेतन पर प्रशासनिक और शैक्षिक सलाहकारों की नियुक्ति की गई, जिससे 1,44,77,000 रुपये का अनियमित भुगतान हुआ।” . इसके अलावा, विश्वविद्यालय ने तीन वर्षों में 3.15 करोड़ रुपये की अग्रिम राशि भी समायोजित नहीं की।
रिपोर्ट में कहा गया है, ”पंतनगर विश्वविद्यालय ने सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने का लाभ देकर उन लोगों को गलत तरीके से 35.89 करोड़ रुपये का भुगतान किया है जो करियर उन्नति योजना के अंतर्गत नहीं आते हैं।इसी तरह, राज्य में संस्कृत विश्वविद्यालय ने विभिन्न कॉलेजों, शैक्षणिक संस्थानों और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को मान्यता देकर 4 करोड़ रुपये का अनुचित लाभ प्राप्त किया है। कुमाऊं विश्वविद्यालय में परीक्षा प्रक्रिया के कम्प्यूटरीकरण के लिए एक फर्म को 23,80,000 रुपये अधिक का भुगतान किया गय।
आयुर्वेद विश्वविद्यालय के बारे में विधान सभा के पटल पर रखी गई रिपोर्ट में कहा गया है, कि ‘अधिकारियों ने ऑनलाइन काउंसलिंग का पैसा सेवा प्रदाता फर्म के खाते में जमा कर दिया और कंपनी ने अब तक 18.48 लाख रुपये वापस नहीं किए हैं, जबकि सुरक्षा सेवा प्रदाता को पैनल से 35 लाख रुपये अधिक का भुगतान किया गया था।