भाजपा के “डबल वोटर – डबल खेल” पर सुप्रीम कोर्ट का हंटर

देहरादून 26 सितम्बर। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उत्तराखंड राज्य चुनाव आयोग (SEC) की उस चुनौती को खारिज कर दिया, जो उसने हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर की थी। फैसले के बाद उत्तराखंड कांग्रेस खुलकर मैदान में उतर गई है। कांग्रेस प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी ने कहा कि कांग्रेस पार्टी लगातार चेतावनी देती रही है कि देशभर में मतदाता सूचियों में भारी धांधली हो रही है, और भाजपा इस गड़बड़ी के सहारे लोकतंत्र को हाईजैक करने की साज़िश रच रही है। दसौनी ने कहा कि लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में देश भर में चल रहा “वोट चोर गद्दी छोड़” अभियान आज और भी मज़बूत हो गया है।

गरिमा ने कहा कि उत्तराखंड में पंचायत चुनावों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने साफ़ कर दिया है कि राज्य निर्वाचन आयोग का रवैया पूरी तरह असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक था। अदालत ने आयोग पर ₹2 लाख का जुर्माना लगाकर यह संदेश दिया है कि लोकतंत्र से खिलवाड़ करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा।

उन्होंने कहा कि धामी सरकार और भाजपा को सोचना चाहिए कि आखिर क्यों बार-बार चुनाव आयोग और मतदाता सूची पर सवाल खड़े हो रहे हैं। यह संयोग है या सुनियोजित साज़िश? उत्तराखंड निर्वाचन आयोग का परिपत्र कहता है कि किसी व्यक्ति का नाम अगर दोहरी मतदाता सूचियों में है, तब भी उसका नामांकन रद्द न हो—दरअसल भाजपा के “डबल वोटर – डबल खेल” की खुली गवाही है। गरिमा ने न्यायपालिका का आभार जताते हुए कहा कि हाईकोर्ट और अब सुप्रीम कोर्ट, दोनों ने इस काले खेल पर सख्ती दिखाई है। अदालत का यह निर्णय लोकतंत्र की मजबूती का प्रतीक है और भाजपा सरकार के नापाक इरादों का पर्दाफाश भी।

दूसरी तरफ कांग्रेस प्रवक्ता गुरदीप सिंह सप्पल ने कहा कि उत्तराखंड चुनाव आयोग ने ग्रामीण लोकल बॉडी ( पंचायत चुनाव ) में ऐसे उम्मीदवारों का नॉमिनेशन रद्द करने से इनकार कर दिया था, जिनका नाम दो या ज़्यादा जगह वोटर लिस्ट में शामिल था! चुनाव आयोग का यह फ़ैसला उत्तराखंड हाई कोर्ट के निर्देश के ख़िलाफ़ था। हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग को नियम मानने के लिए कहा था, लेकिन चुनाव आयोग ने ऐसा नहीं किया। इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने आज पेनल्टी लगाई है।

चुनाव आयोग ने ऐसा किया क्यों?

दरअसल जनवरी में उत्तराखंड में अर्बन लोकल बॉडी यानि म्युनिसिपल चुनाव हुए। चुनाव में BJP ने अपने लोगों को गांव से शहर की वोटर लिस्ट में शिफ्ट कर दिया, ताकि फ़र्ज़ी वोटिंग से वो चुनाव जीत सकें।चुनाव पूरे होने के बाद, BJP ने अपने लोगों को वापिस गाँव की वोटर लिस्ट में शिफ्ट करना शुरू किया ताकि मई-जून में होने वाले पंचायत चुनाव में वोटिंग में नाजायज़ फ़ायदा ले सके।

हमने इसे पकड़ लिया। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा ने चुनाव आयोग को बार बार लिखा कि ऐसा नहीं किया जा सकता। हमने चुनाव आयोग को याद दिलाया कि वोटर लिस्ट में नाम शामिल करने के लिए कम से कम छ: महीने उसी पते पर रहने का नियम है। छ: महीने से कम समय में कोई भी वोटर दुबारा अपना नाम शिफ्ट नहीं कर सकता है।

कांग्रेस के विरोध के कारण BJP के लोग वापिस ग्रामीण एरिया में अपना नाम शामिल नहीं करवा सके। तो उन्होंने क्या करना शुरू किया? उन्होंने नाम शिफ्ट करने की जगह नए सिरे से अपना नाम दूसरी जगह जुड़वा लिया। अब वो दो दो जगह के वोटर हो गए।

BJP के ऐसे लोगों के जब चुनाव में टिकट मिला, तो हमारे लोग ने चुनाव आयोग से कहा कि ऐसे लोगों का नॉमिनेशन रद्द होना चाहिये। लेकिन चुनाव आयोग ने अपने ही नियम को मानने से मना कर दिया।इसीलिए लोग हाई कोर्ट में गए। हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि Uttarakhand Panchayati Raj Act, 2016 के Section 9(6) और 9(7) के अनुसार ऐसे उम्मीदवारों का नॉमिनेशन रद्द किया जाये।

लेकिन उत्तराखंड चुनाव आयोग ने हाई कोर्ट के निर्देश को ही मानने से मना कर दिया और BJP के लोगों को दो दो जगह वोटर होने के बावजूद चुनाव लड़ने की अनुमति दे दी!इसीलिए आज सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग पर ही पेनल्टी लगा दी है। वोट चोरी की इस दास्तान पर सुप्रीम कोर्ट ने आज अपनी मुहर लगा दी है।

 

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