‘सत्यम शिवम सुंदरम’
नई दिल्ली। कांग्रेस नेता व सांसद राहुल गांधी ने रविवार को अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर पर एक लेख साझा किया । इस लेख में उन्होंने ‘एक हिंदू अपने अस्तित्व में समस्त चराचर को करुणा और गरिमा के साथ उदारतापूर्वक आत्मसात करता है, क्योंकि वह जानता है कि जीवनरूपी इस महासागर में हम सब डूब-उतर रहे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस लेख को ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ शीर्षक दिया। उन्होंने लिखा ”एक हिंदू अपने अस्तित्व में समस्त चराचर को करुणा और गरिमा के साथ उदारतापूर्वक आत्मसात करता है, क्योंकि वह जानता है कि जीवनरूपी इस महासागर में हम सब डूब-उतर रहे हैं। निर्बल की रक्षा का कर्तव्य ही उसका धर्म है।” उनके इस लेख पर काफी चर्चा भी हो रही है, जिसमें राहुल गांधी ने हिन्दू होने के मतलब की व्याख्या की है। क्या है इस लेख में, आइए समझते हैं।
हिंदू कौन है?
राहुल गांधी ने जिंदगी के अर्थ को परिभाषित करते हुए लिखा कि,”कल्पना कीजिए, जिंदगी प्रेम और उल्लास का, भूख और भय का एक महासागर है और हम सब उसमें तैर रहे हैं. इसकी खूबसूरत और भयावह, शक्तिशाली और सतत परिवर्तनशील लहरों के बीचोंबीच हम जीने का प्रयत्न करते हैं. इस महासागर में जहां प्रेम, उल्लास और अथाह आनंद है- वहीं भय भी है. मृत्यु का भय, भूख का भय, दुखों का भय, लाभ-हानि का भय, भीड़ में खो जाने और असफल रह जाने का भय. इस महासागर में सामूहिक और निरंतर यात्रा का नाम जीवन है जिसकी भयावह गहराइयों में हम सब तैरते हैं. भयावह इसलिए, क्योंकि इस महासागर से आज तक न तो कोई बच पाया है, न ही बच पाएगा।” उन्होने आगे लिखा है कि जिस व्यक्ति में अपने भय की तह में जाकर इस महासागर की सच्चाई से देखने का साहस है वही हिंदू है।
एक हिंदू क्या करता है?
राहुल गांधी ने इस लेख में हिन्दू कौन है के सवाल पर बात करने के बाद हिन्दू के जरिए किए जाने वाले बेहतरीन कामों की ओर प्रकाश डाला है। उन्होंने आगे लिखा ,”एक हिंदू अपने अस्तित्व में समस्त चराचर को करुणा और गरिमा के साथ उदारतापूर्वक आत्मसात करता है. क्योंकि वह जानता है कि जीवनरूपी इस महासागर में हम सब डूब-उतर रहे हैं. अस्तित्व के लिए संघर्षरत सभी प्राणियों की रक्षा वह आगे बढ़कर करता है. सबसे निर्बल चिंताओं और बेआवाज चीखों के प्रति भी वह सचेत रहता है. निर्बल की रक्षा का कर्तव्य ही उसका धर्म है. सत्य और अहिंसा की शक्ति से संसार की सबसे असहाय पुकारों को सुनना और उनका समाधान ढूंढना ही उसका धर्म है. एक हिंदू में अपने भय को गहनता में देखने और उसे स्वीकार करने का साहस होता है. जीवन की यात्रा में वह भयरूपी शत्रु को मित्र में बदलना सीखता है. भय उस पर कभी हावी नहीं हो पाता, वरन घनिष्ठ सखा बनकर उसे आगे की राह दिखाता है. एक हिंदू का आत्म इतना कमज़ोर नहीं होता कि वह अपने भय के वश में आकर किसी क़िस्म के क्रोध, घृणा या प्रतिहिंसा का माध्यम बन जाए।”