बिशन सिंह रावत हरियाला
सैकड़ों वर्षों का अनुभव ये अनुभव हर पूर्वजों की देन उनका बचपन का इतिहास मेरा अनुभव, अपनी संस्कृति सभ्यता परम्पज्ञरा साहित्य संस्कार ख़ान पान देव प्रथा लोक प्रथा रिति रिवाजों व धरोहर रूपी विरासतों से दगड़ियों ये मेरा निजी विचार है गलत लगे तो इग्नोर करें , अपना 2025 वाला ज्ञान ना दें। और देना भी है 1947 के बाद या उससे पहले उत्तराखंड की प्रथाओं अपने पूर्वजों की सोच, मेंहनत और उनके संस्कारों का ज्ञान दें। खासकर युवाओं को ऐसी दिव्य संस्कृति से प्रेरणा लेनी चाहिए।
हमारे बुजुर्ग अनपढ़ थे, पर उनके अंदर इस पूरे ब्रह्माण्ड का ज्ञान था, ईश्वर ने उनके साथ कभी भी ऐसा प्राकृतिक खेल नहीं खेला , वे खुश थे खुशियां बांटते थे, आज का युवा पढ़ा लिख होने के बाद भी, 80% युवा उनको कमजोर साबित करता है, मां काली, गोलू देवता, मसांण देवता, कल बिष्ट देवता, आदि कई देवी देवताओं का खाना बंद कर दिया गया, मांस खाने वाले देवी देवताओं को नारियल खिला रहे हें , बाबाओं के चक्कर में अपनी संस्कृति का बंटाधार कर दिया,मगर कोई उपाय तो सरकार और समाज को निकालना होगा, नहीं तो गेहूं के साथ घुन भी पिसता जा रहा है।
जीवन अनमोल है, अपनी परम्पराओं से ना भटकें, उत्तराखंड सरकार के लिए ये मुख्य बातें इन पर सरकार और समाज गौर करें, चिंतन अरु मनन करें, और नहीं किया तो मुझे मेरी लेख के लिए मांफ करें, और इग्नोर करें, ये मेरी भड़ास थी निकाल दी , मैं अपनी संस्कृति, सभ्यता परम्परा साहित्य संस्कार ख़ान पान देव प्रथा लोक प्रथा रिति रिवाज तमाम हमारी धरोहर रूपी विरासतों का सम्मान करना हूं करता रहूंगा। सभी उत्तराखंड के लोग अपने गांव दुकान, मकान, होटल, छाना खरूक रहन वासन बाटा घाटा रोड़ आना जाना स्कूल आफिस नदी नाले गधेरे गैर भ्यो भंगारों मठ मंदिरों थानों देवी देवताओं के स्थानों से कम से कम 1 किलोमीटर की दूरी पर रखें , और बजार नदी से कम से कम 2 या चार किलोमीटर दूर रखें , पहले से बने हें तो टाईम लगेगा पैसा लगेगा वहां से हटा दें, दूर चले जायें , ज़िन्दगी रहेगी तो सब बन जायेगा। ज़िद ना करे जीवन अनमोल है, रहेगी तो कहीं भी शकुन से रह सकते हो।
उत्तराखंड सरकार इन विषयों पर चिंतन मनन करें , और लोगों को स्थानांतरण करने का जो मानदेय बनता है तय करें , हमारे देव प्रथाओं पर लगे बेंन हटा दिया जाय, नास्तिक कालनेमि व्यक्ति मठ मंदिरों में ना रहें,संस्कृति संबंधी कोई भी विभाग में , औद्योगिक विभाग में बाहरी अधिकारी मंत्री ना रखें , जो भी अधिकारी हमारी संस्कृति को नहीं मानता नहीं जानता,ऐसे लोग उत्तराखंड देवभूमि में विनाश का कारण बन सकते हें, ये देवभूमि को मंजूर नहीं।
उत्तराखंड के पारम्परिक त्योहार, मेले कौथिक संक्रांति थानों में अगनाव चढ़ाना देवी देवताओं के हर त्योहार को जैसे जागर जातरा वैसी, देवी देवताओं का पूरा खानपान के साथ पूजन पाठ, जैसे दिव्य विहंगम चीजों पर सरकार हर गांव के वैसी में एक मानदेय तय करें, जिससे जगरी डंगरी पूजन भंडारा आदि का मानदेय दे सकें , और सरकारी पैसा किस काम का। गावों में साल में एक बार सरकार ये मानदेय तय करें, अगर मेरी बातें समझ नहीं आ रही हें तो हर कोई अपने गांव के बुजुर्ग महिला पुरूषों से उनके बचपन की बातें व उस समय की संस्कृति परम्पराओं सभ्यताओं संस्कारों खान पान देव प्रथा लोक प्रथाओं के बारे में पूछें उनकी बातों को आज के युवाओं के जीने की प्रेरणा बनाऐ, हमारे पित्र अनपढ़ जरूर थे, लेकिन उनके अंदर सनातन संस्कृति का पूरा ज्ञान था और पूरा ब्रह्मांड उनके ज्ञान में समाया था।
हमारे वेद पुराण, उपनिषद आदि सब कुछ उनके विचारों में उनके मुंह से निकलता था , उनके समय में सनातनी ज्ञान फल फूल रहा था, ऐसी कोई भी प्राकृतिक आपदा नहीं आती अगर आ भी जाती तो हर गांव में देबी मां भगवती अवतार हो जाती थी, आप हमारे बुजुर्ग लोगों की इस सोच और हकीकत को आज के युवाओं की प्रेरणा श्रोत बना सकते हैं। दगड़ियों हमारे मां बापु अनपढ़ थे पर बचपन से लेकर आज तक हमेशा उनके बताए गये रास्ते ज्ञान तौर तरीका मर्यादा आज के पढ़े लिखे युवाओं से कहीं आगे है,और जब तक उत्तराखंड राज्य नहीं बना था तब तक हमारी एकता संस्कृति फल फूल रहीं थी।
जब से उत्तराखंड राज्य बना तब से उत्तराखंड में तबाही आ रही है कारण खोजें, उत्तराखंड देवभूमि राज्य आंदोलनकारियों की खटीमा मुजफ्फरनगर रामपुर तिराहा की वो 1994 की वो चीख पुकार आज भी उत्तराखंड देवभूमि के हर क्षेत्र में गूंजती हैं जरुरत है तो बस सुनने वाली कानों की , उनके द्वारा मांगा गया गैरसैण राज्य की मांग ही उनकी सच्ची श्रद्धांजलि थी, पर अहंकारी राष्ट्रीय पार्टियों ने इसे मज़ाक बना के रख दिया, उत्तराखंड क्रांति दल की सोच और हकीकत को ऐसे इग्नोर कर दिया जैसे उत्तराखंड राज्य इनके आंदोलन से बना है, हमारे परिवार में 7 पीढ़ी के किसी बुजुर्ग को भी अगर सताया गया है तो वो आज भी हर परिवार से ताल्लुक रखता है, हर जागर में किसी ना किसी पर आकर अपना हक मांगता है, यही देवभूमि है, हमारी देव प्रथा है, पर रामपुर खटीमा मुजफ्फरनगर के वे शहीद कहां जायेगे उनकी मांगें भी पूरी करो वो भी आवाज लगाती हैं, हमें मुक्ति दो, गैरसैंण राजधानी ही उनकी मुक्ति का द्वार है, ये आपदाएं रूक जायेगी, यही हकीकत है ।
हमारी सरकारें जल्द गैरसैंण को राजधानी घोषित करें और राज्य आंदोलनकारी शहीदों को समर्पित करें ,आप सरकार चलाए इसमें दिक्कत नहीं, ये नेक काम करने से आपके प्रति सकारात्मक सोच उत्तराखंड के देवतुल्य भाई बहिनों का आयेगा, अहंकार से बाहर आकर उत्तराखंड क्रांति दल के उन शहिदों को सम्मानित करें, नहीं तो आने वाला समय उत्तराखंड क्रांति दल का होना निश्चित है , मेरी बात गांठ पाड़ लो, बुजुर्गो ने ऐसे ही नही कहा कि 12 वर्ष में ओडा़ अपनी ही जगह आता है, और अपनी पित्रों की बसाई संस्कृति को बढ़ावा दें, इसे जस का तस रहने दें विकास करें , उत्तराखंड के उन कलाकारों को मासिक वेतन पेंशन दें, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी संस्कृति को समर्पित कर दी।
उत्तराखंड की संस्कृति को युवा पीढ़ियों तक पहुंचाने के लिए, आज भी वो कलाकार रोजी रोटी के लिए जूझ रहा है, सरकार प्रशासनिक तौर पर उत्तराखंड का शुद्धिकरण करें , और होली दिवाली घी संक्रान्ति महोत्सव उतरैणी मकरैणी रक्षाबंधन सोमनाथ कौतिक, पंचमी फूलदेई संक्रांति, शिवरात्रि रामनवमी बड़दिन आदि जैसे पारम्परिक त्योहारों की छुट्टी घोषित करें, जैसे ईद करवाचौथ रमजान गुरूनानक जयंती ईदुल फितर, बकरा ईद, होली डे, क्रिसमस डे जैसे बाहरी प्रदेशों की संस्कृति को हमारे उत्तराखंड छुट्टियां करते हो,और हमारे उपर थोपते हो, क्या हमारी कोई पहचान नही, क्या हमारे बच्चों को अपनी संस्कृति जानने का अधिकार नही, सरकार छुटियां तय करे रें।
सरकार हमारी है, हमारा ध्यान रखे, हमारे लिए काम करें, मेरी बातों को आज का युवा ध्यान रखे कि अपना हक अपनी संस्कृति के लिए आगे आकर सरकार को चेताऐ, पैसे की कोई कमी नहीं बस विकास कहां हो रहा है, पता नही, ये अरबों-खरबों रुपये गांव बजार मठ मंदिरों से नदी नालों से भ्यो भंगारों से दूर बसाने में लगाते तो काम दिखता, आज अभी अगर उत्तराखंड के इतिहास पर नजर नहीं मारी तो स्वर्ग भूमी देवभूमि तो रहेगी लेकिन आप नहीं रहेंगे, इसपर विचार करें
धन्यवाद उत्तराखंड देवभूमि मिट्टी से उपजा लोक गायक बिशन सिंह रावत हरियाला, जय बद्री विशाल जय गोलू देवता, जय मां काली, काइंका,