राकेश डंडरियाल
2013 में केदारनाथ में आई विनाशकारी आपदा ने प्रदेश, देश व दुनिया को चौंका दिया था, हज़ारों की संख्या में तीर्थयात्री मारे गए, 11 साल बीत गए, लेकिन न केंद्र की मोदी सरकार ने सबक लिया और न राज्य की सरकारों ने। तब से लेकर अब तक यह इलाका मौसम विज्ञानियों के लिए एक चुनौती बना हुआ है, इस इलाके के लिए मौसम की सटीक भविष्यवाणी करना आसान नहीं रहा गया है । हाल ही में हुई अप्रत्याशित बारिश के पैटर्न ने मौसम विशेषज्ञों को जवाब ढूंढने के लिए परेशान कर दिया है। प्रदेश की डबल इंजन सरकार ने लगातार 7 दिनों तक राहत कार्य चलाकर लगभग 15 हजार श्रद्धालुओं को किसी तरह से बचाया।
सवाल यही से शुरु होता है कि एक तरफ देश को दुनिया की नंबर तीन इकॉनमी बनाने का दावा किया जा रहा है, तो दूसरी तरफ गृहमंत्री अमित शाह मानते है कि इस समय देश के पास मौसम की सटीक जानकारी देने वाला सिस्टम है। अगर केरल के लिए सटीक जानकारी भारतीय मौसम विज्ञान विभाग कर सकता है तो केदारनाथ के लिए क्यों नहीं ? दुनिया की सबसे लंबी चलने वाली चारधाम यात्रा में आखिर इतनी हील हवाली क्यों चल रही है। मौसम के जानकारों का मानना है कि अगर प्रशासन के पास प्रारंभिक व गंभीर चेतावनी की जानकारी होती तो शायद प्रदेश व केंद्र की मोदी सरकार को केदारनाथ में एमआई-17 और चिनूक हेलीकॉप्टर न उतारने पड़ते। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चारधाम यात्रा को अपने एक ड्रीम प्रोजेक्ट के रूप में देखते हैं !
सरकार ने 2013 की विनाशकारी आपदा के मद्देनजर, इस क्षेत्र में मौसम का पूर्वानुमान लगाने के लिए डॉपलर रडार स्थापित करने की बात कही थी, 11 साल गुजरने के बाद भी परियोजना निविदा प्रक्रिया में फंसी हुई है। प्रदेश में अभी तक मात्र तीन डॉपलर रडार लग सके हैं पहला मुक्तेश्वर में 2021 के दौरान स्थापित किया गया जबकि दूसरा 2022 में सुरकंडा (मसूरी के नजदीक ) और तीसरा 2023 में लैंसडाउन में स्थापित किया गया । प्रदेश के भूवैज्ञानिक और मौसम वैज्ञानिक क्षेत्र में मौसम पूर्वानुमान में सुधार के लिए डॉपलर रडार स्थापित करने की पुरजोर वकालत कर रहे हैं । उनका कहना है कि चारधाम यात्रा के मध्यनजर रुद्रप्रयाग और और चमोली में डॉपलर रडार स्थापित करना जरुरी हो गया है। और वो भी उस एरिया में जहाँ से चारधाम यात्रा गुजरती है।
दूसरी तरफ एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग में प्रोफेसर महेंद्र प्रताप सिंह बिष्ट का कहना है कि उत्तराखंड का सीमान्त इलाका खासकर रुद्रप्रयाग, चमोली,और पिथौरागढ़ भौगोलिक तौर पर नाजुक स्थिति से गुजर रहा है , और समय रहते यहाँ के मौसम पर सटीक जानकारी के लिए डॉपलर रडार जरुरी है , खासकर केदारनाथ एरिया में, इस इलाके में पल पल मौसम बदलता है, कभी अत्यधिक बारिश तो कभी अत्यधिक बर्फवारी, इसके अलावा उन्होंने केदारनाथ इलाके में लगातार हो रहे एवलांच को लेकर भी चिंता जाहिर की।
बिष्ट ने कहा कि डॉपलर रडार चारधाम यात्रा के लिए जरुरी है , ताकि श्रद्धालुओं को सही समय पर सही जानकारी मिल सके। उन्होंने कहा कि अहम् यह भी है कि सिस्टम पर नजर रखने के लिए आपके पास प्रॉपर मैनपावर ,टेक्निकल स्टाफ और मौसम वैज्ञानिकों की 24 घंटे उपस्थिति भी जरुरी हो। खाली डॉप्लर लगा देने से ही समस्याएँ ख़त्म नहीं होने वाली हैं। प्रोफेसर बिष्ट ने चेतावनी देते हुआ कहा हैं कि अगर आज वाली स्थिति बरक़रार रही तो आने वाले समय में हमें केदारनाथ आपदा से बड़ी आपदा भी देखने को मिल सकती है, इसलिए जरुरी है कि समय रहते ही तैयारियां कर ली जाएँ।
हाल ही में ISRO द्वारा हिमालय पर जारी की गई रिपोर्ट में भी बताया गया है कि प्रकृति और जलवायु को संजोकर रखने वाला हिमालय एक गंभीर समस्या से जूझ रहा है,और यह समस्या है ग्लोबल वार्मिंग की । रिपोर्ट में कहा गया है कि हिमालय में साल दर साल मौसम में परिवर्तन की वजह से ग्लेशियर पीछे की तरफ खिसक रहे हैं।