उत्तराखंड : बिल्डर के हवाले युवाओं के सपनों का आईटी पार्क

देहरादून स्थित आईटी पार्क की जमीन को फ्लैट्स बनाने वाली निजी कंपनी को सौंप दिया गया है, जो बाद में इन्हें बाजार में बेचकर मुनाफा कमाएगी।

देहरादून 08 अक्टूबर। देहरादून का आईटी पार्क कभी युवाओं के लिए रोजगार और तकनीकी अवसरों का केंद्र बनने का सपना था। इस पार्क को बनाया ही इसलिए गया था कि राज्य के युवा आईटी और सॉफ्टवेयर सेक्टर में अपने भविष्य को नई दिशा दे सकें। लेकिन अब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने उसी आईटी पार्क को रियल एस्टेट प्रोजेक्ट में बदलकर उसकी मूल भावना को ही समाप्त कर दिया है। वरिष्ठ पत्रकार अजित राठी जी के खुलासे ने यह उजागर किया है कि आईटी पार्क की जमीन को फ्लैट्स बनाने वाली निजी कंपनी को सौंप दिया गया है, जो बाद में इन्हें बाजार में बेचकर मुनाफा कमाएगी। यानी जनता की जमीन को “Public to Private Transfer” के ज़रिए बिल्डर लॉबी के हवाले कर दिया गया।

सबसे गंभीर बात यह है कि 40,000 रुपये प्रति वर्गमीटर बेस रेट वाले टेंडर में बोली केवल 46,000 रुपये तक ही गई और दोनों प्लॉट एक ही कंपनी RCC Developer को दे दिए गए। यह पूरी प्रक्रिया न सिर्फ़ संदिग्ध लगती है बल्कि संभावित मिलीभगत का भी संकेत देती है। इतना ही नहीं, कंपनी को केवल 25% अग्रिम राशि जमा करने और बाकी रकम आसान किश्तों में देने की छूट दी गई, मानो सरकार खुद किसी निजी डेवलपर की आर्थिक मददगार बन गई हो।

इस फैसले से उत्तराखंड के हज़ारों युवाओं के सपनों पर पानी फिर गया। जहाँ आईटी कंपनियाँ आनी चाहिए थीं, वहाँ अब अपार्टमेंट प्रोजेक्ट बनेंगे। यह निर्णय न सिर्फ़ “Skill & Employment Oriented Economy” के खिलाफ है, बल्कि प्रदेश की युवा पीढ़ी के साथ खुला अन्याय है।

सिडकुल, जिसका उद्देश्य उद्योगों को बढ़ावा देना था, अब खुद रियल एस्टेट के कारोबार में उतरती दिख रही है। पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव साफ़ झलकता है। न जनता को बताया गया कि टेंडर कैसे हुआ, न यह कि किन कंपनियों ने बोली लगाई। सरकार ने बिना किसी सार्वजनिक संवाद या विचार-विमर्श के यह निर्णय लेकर जनता के भरोसे और जवाबदेही दोनों को कमजोर किया है।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और उद्योग सचिव विनय शंकर पांडेय से अब जनता यह जानना चाहती है कि क्या यह फैसला जनहित में था या किसी खास कंपनी के हित में? राज्य की अमूल्य संपत्ति को 90 साल की लीज़ पर देकर सरकार ने क्या वास्तव में उत्तराखंड की भावी पीढ़ियों का अधिकार गिरवी रख दिया है? यह सिर्फ़ एक ज़मीन का नहीं, बल्कि प्रदेश के भविष्य और नीतिगत नैतिकता का सवाल है।

 

 

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