मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ के फैसले पर चुप क्यों है धामी सरकार ?
राकेश डंडरियाल
नैनीताल। विगत 25 अगस्त 2023 को उत्तराखंड हाई कोर्ट ने प्रदेश की धामी सरकार को तीन महीने के भीतर प्रदेश में लोकायुक्त नियुक्त करने का निर्देश दिया था, दो महीने बीत गए हैं लेकिन ढुलमुल सरकार अभी तक लोकायुक्त नहीं ढूंढ पाई है। आखिर ऐसा क्या हैं कि डबल इंजन पर सवार धामी एक लोकायुक्त को नहीं ढूंढ पा रहे हैं ? आखिर सरकार को डर किस बात का है? भाजपा ने तो अपने चुनावी घोषणापत्र में 100 दिन के अंदर लोकायुक्त की नियुक्ति की बात कही थी, कही सरकार को अपना डर तो नहीं सता रहा है?
उत्तराखंड में विगत दो सालों के अंदर भ्रष्टाचार की अचानक से बाढ़ आ गई है, जिसमें कई भाजपाई नेताओं की सक्रियता शायद मुख्यमंत्री के लिए संकट का कारण बन सकती है। दूसरी तरफ लोकायुक्त कार्यालय में काम करने वाले कर्मियों को लगातार वेतन मिल रहा है जबकि हाई कोर्ट ने साफ़ किया था कि उन्हें तब तक वेतन नहीं मिलना चाहिए जब तक कि भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल की नियुक्ति को अंतिम रूप नहीं दे दिया जाता। सरकार लोकायुक्त संस्थान के नाम पर हर साल 2 से 3 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं।
उत्तराखंड में वर्तमान में कोई भी जांच एजेंसी सरकार से पूर्व अनुमति प्राप्त किए बिना किसी भी नौकरशाह के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला शुरू करने के लिए अधिकृत नहीं है। धामी सरकार की ओर से हाई कोर्ट में बताया गया कि लोकायुक्त चयन के लिए सर्च कमेटी का गठन किया जा चुका है। जिसमें हाई कोर्ट से वरिष्ठ न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी के अलावा सर्च कमेटी में मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष, विधानसभा अध्यक्ष सदस्य होंगे।
राजसत्ता न्यूज़ ने जब इस बारे में नेता प्रतिपक्ष और बाजपुर के विधायक यशपाल आर्य से बात की तो उन्होने कहा कि सर्च कमेटी तो बन गई थी, लेकिन दो महीने बीत गए हैं सर्च कमेटी की केवल एक बैठक हुई है। तब से लेकर आज तक कोई बैठक या नाम नहीं सुझाए गए हैं। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अब धामी सरकार किसी ऐसे सख्श को प्रदेश के लोकपाल पद पर थोपना चाहती है जो सरकार का कठपुतली बनकर रहे।
उत्तराखंड में पिछले 10 साल से नए लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं हो पाइ है। 2017 में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में चुनावी घोषणापत्र में सत्ता में आने के 100 दिन के भीतर लोकायुक्त नियुक्त कर दिया जाएगा, उनकी सरकार ने तय अवधि में इसे विधानसभा में पेश भी किया।विपक्ष ने भी इसको अपना समर्थन दिया, लेकिन इसे प्रवर समिति को भेज दिया। प्रवर समिति भी लोकायुक्त पर अपनी रिपोर्ट सौंप चुकी है। जस्टिस एमएम घिल्डियाल राज्य के दूसरे लोकायुक्त का कार्यकाल वर्ष 2013 तक रहा था तब से यह पद खाली है ।
करोड़ों फूंके लेकिन रिजल्ट जीरो
2013-14 में एक करोड़ 62 लाख
2014-15 में एक करोड़ 45 लाख
2015-16 एक करोड़ 33 लाख
2016-17 एक करोड़ 76 लाख
2017-18 एक करोड़ 88 लाख
2018-19 दो करोड़ 13 लाख
2019-20 दो करोड़ नौ लाख
2020-21 एक करोड़ दस लाख रुपये
आकड़े आरटीआइ याचिकाकर्ता रविशंकर जोशी को सरकार की ओर से दिए गए हैं