उत्तराखंड में भड़कती आग , वन सम्पदा हो रही ख़ाक

उत्तराखंड में भड़कती आग , वन सम्पदा हो रही ख़ाक

राकेश डंडरियाल

देहरादून। उत्तराखंड का मौसम विभाग और दुनियाभर के मौसम एक्सपर्ट बार बार चेता रहे हैं कि 2025 का साल भीषण गर्मी वाला साल रहने वाला है,और उत्तराखंड के जंगलों में लगने वाली आग पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ सकती है। क्या धामी सरकार इसके लिए तैयार है ? उत्तराखंड में बिगत 15 फरवरी से फायर सीजन शुरू हो चुका है, इसे देखते हुए देहरादून में विगत 13 फरवरी को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की ओर से मॉक ड्रिल का आयोजित किया गया , कई तर्क कुतर्क हुए, लेकिन ग्राउंड जीरो पर स्थिति अलग ही है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने तामझाम के साथ बैठक की अध्यक्षता की, मॉक ड्रिल के दौरान उत्तराखंड में वन अग्नि को नियंत्रण करने को लेकर विस्तृत रूप से चर्चा हुई, और सुना है कि आगे का रोड मैप भी तैयार कर लिया गया है।

लेकिन ग्राउंड पर स्थति ये है कि तब से आज तक हर रोज कहीं न कहीं आग लगने की घटनाएं हो रही हैं। जिस दिन राज्य स्तरीय मॉक ड्रिल का आयोजन किया जा रहा था उसी दौरान अल्मोड़ा के ताकुला विकासखंड भेटुली,सुपाकोट, फल्टा, सेजारी इलाकों के जंगल धधक रहे थे।उसके अगले ही दिन त्यूणी में जंगल की आग इतनी विकराल हुई कि उसने तीन मकानों को जलाकर राख कर दिया। मॉक ड्रिल के चौथे दिन यानि 17 फरवरी को रुद्रप्रयाग जिले के मदमहेश्वर घाटी के जंगलों में भीषण आग लगी जिसमें लाखों की वन संपदा राख हो गई।

चर्चा है कि आग से निपटने के लिए वन विभाग ने फॉरेस्ट फायर नामक एक एप्लिकेशन विकसित किया है, एप्लिकेशन में उत्तराखंड के 7,000 से अधिक वन कर्मचारियों और 40 से अधिक अग्निशमन वाहनों से जोड़ा गया है। एप्लिकेशन में एक अत्याधुनिक अलर्ट सिस्टम लगाया गया है, जो जंगल में आग लगते ही संबंधित वनकर्मियों को तुरंत सूचना भेजता है। आग की तीव्रता और स्थान के आधार पर यह सूचना वन विभाग के अधिकारियों और फील्ड टीमों को दी जाती है ताकि वे तत्काल प्रतिक्रिया दे सकें। माना कि वनकर्मियों को सूचना मिल भी गई तो एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ तक पहुंचने के लिए क्या वनकर्मियों के पास पर्याप्त संसाधन हैं ?

सवाल ये है कि क्या देहरादून के बंद कमरों में बैठे अग्निशमन के मठाधीशों ने इस एप्लिकेशन से कुछ सबक लिया ? या कुछ सहायता मिली ? प्रदेश में अभी तक आग लगने के 18 मामले सामने आ चुके हैं जिसमें 11 केवल गढ़वाल इलाके से हैं , सरकारी आकड़ों में कुमाऊं में कोई आग नहीं लगी लेकिन अल्मोड़ा का ताकुला इसका उदाहरण है। इसके अलावा वन्यजीव इलाकों में 7 मामले दर्ज किए गए हैं।

सरकार और अधिकारियों की बेरुखी का एक प्रमाण यह भी हैं कि पिछले साल देश की सुप्रीम अदालत को कहना पढ़ गया कि हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि उत्तराखंड सरकार की जंगल की आग पर कंट्रोल करने वाली अप्रोच बेहद निराशाजनक है। बर्ष 2021 में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने फॉरेस्ट फायर रोकने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे , उस आदेश का कितना अनुपालन हुआ? खुद मुख्यमंत्री कह चुके हैं कि अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी , लेकिन क्या किसी अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई ?

सरकार ने एक्शन प्लान तो बनती है लेकिन उसे जमीनी स्तर पर लागू नहीं कर पाती है ,और नए सीजन में भी ठीक वही हो रहा है। आग बुझाने के लिए सेना को करोड़ों रुपये दिए जा सकते हैं लेकिन स्थानीय लोगों से सहायता लेने में परहेज क्यों? MI 17 V5 हेलीकाप्टर को बुलाया जा सकता है तो स्थानीय नागरिकों को क्यों नहीं ? , महिला समूहों की सहायता क्यों नहीं ली जा रही है ?। सरकार ने जिन लोगों के खिलाफ आपराधिक केस दर्ज किए थे उनका क्या हुआ , क्या उन्हें कठोर सजा मिली ?

 

 

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