36 लोगों का हत्यारा कौन ?

राकेश चंद्र

सोमवार को अल्मोड़ा जिले के सल्ट तहसील में मरचूला के पास ज्यूखड़ाचौड़ा बैंड पर भीषण बस दुर्घटना में 36 व्यक्तियों की अकाल मौत हो गई, 26 लोग जीवन और मौत से जूझ रहे हैं। और दुर्भाग्य देखिए कि जिन लोगों को बचाने का दायित्व प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल पर था, उसी ने ऐन वक्त पर धोखा दे दिया । जिस AIIMS ऋषिकेश में हेली एम्बुलेंस का शुभारंभ 29 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था वो भी हादसे के दिन मरीजों को लाने के लिए उड़ नहीं सकी। दुःख इस बात का भी है कि सरकार केदारनाथ में थार सेवा दे सकती है, पर दीपावली व अन्य त्योहारों पर अपने पहाड़ वासियों को एक अदद सरकारी बसें नहीं दे पाई, क्योँकि उत्तराखंड पर राज करने वालों के लिए पहाड़ियों के जीवन की कीमत मात्र 4 लाख है। जहाँ औसत हर 8 घंटे में एक सड़क दुर्घटना से मृत्यु होती है।

यह कोई पहला अवसर नहीं है जब इस तरह का हादसा हुआ हो, इससे पहले भी इसी इलाके में 1 जुलाई 2018 को धुमाकोट तहसील के भौन पिपली मोटर मार्ग पर 61 सवारियों से खचाखच भरी बस गहरी खाई में गिर गई थी जिसमें 48 लोगों की मौत हो गई थी। एक और हादसा अक्टूबर 2022 में रिखणीखाल-बीरोंखाल मार्ग पर सीमडी गांव के पास हुआ जहाँ एक शादी की बस अनियंत्रित होकर 500 मीटर गहरी खाई में जा गिरी थी इसमें भी 32 लोगों की मौत हो गई थी। मजाल क्या कि किसी ने कोई सबक लिया हो।

1 जुलाई 2018 के हादसे के बाद सरकार के मुखिया मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पहाड़ के सभी दुर्गम तहसीलों सहित मैदानी क्षेत्रों में संभागीय परिवहन विभाग के माध्यम से कुल 102 सब इंस्पेक्टर की तैनाती का निर्णय लिया था । 31 सब इंस्पेक्टर तैनात भी हुए।,जिनमें से 27 को पहाड़ के दुर्गम क्षेत्रों में तैनाती लेनी थी। लेकिन वह आज तक परवान नहीं चढ़ पाया । सभी एसआई देहरादून, हरिद्वार, हल्द्वानी, रुद्रपुर में अपनी सेवाएं दे रहे हैं , लेकिन पहाड़ अनाथ है। अगर इनकी तैनाती पहाड़ में होती तो मरचूला में आज हुए हादसे को नहीं देखना पड़ता । सड़क हादसों में मौत का आकड़ां लगातार बढ़ता ही जा रहा है 2022 में जहाँ 1042 लोगों की सड़क दुर्घटना में मौत हुई वही 2023-में यह आंकड़ा 1054 पहुँच गया था ।

परिवहन विभाग प्रदेश के मुख्यमंत्री धामी जी के पास है। वो दिन प्रतिदिन चकाचौंद सड़कों का ढिंढोरा तो पीटते हैं लेकिन बस्तु स्थिति कुछ अलग ही है। सरकार मुआवजा देकर इतिश्री कर लेती है, एक महीने के लिए पुलिस व यातायात विभाग जागता है और उसके बाद वो ऐसी नींद सो जाता है कि तब जागता है जब इस प्रकार की बड़ी घटना होती है। आरटीओ को ससपेंड कर दिया जाता है और फिर चुपचाप से वापस ले लिया जाता है, आज भी वही हुआ रामनगर की आरटीओ को ससपेंड कर दिया गया , क्या सरकार के पास एक मात्र यही तरीका बचा हुआ है ?

दुर्घटना हुई है 36 लोगों ने जान गवाई है, मगर देहरादून के सचिवालय में बैठे मठाधीशो के पास मीटिंग के अलावा कोई सलूशन नहीं है। वो तभी मीटिंग और जांच कराते हैं जब इस तरह की दुर्घटनाएं हो जाती है, जाहिर है मुख्यमंत्री के पास अगर ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट है तो सवाल तो उठेंगे ही! सवाल उस शून्य हो चुकी ब्यूरोक्रेसी की मानसिकता का है जो देहरादून में बैठकर पहाड़ पर राज कर रही है, मुख्यमंत्री जी आप डबल इंजन की सरकार चला रहे हैं, और एक मुर्ख सा मुर्ख आदमी भी बता सकता है कि त्योहारों के समय और गर्मियों के समय पहाड़ पर बसों के लिए आपाधापी होती है, लेकिन आपके निठल्ले और नल्ले अधिकारीयों की सोचने की शक्ति शून्य हो चुकी है।

उत्तराखंड का पडोसी राज्य हिमाचल जिसकी आबादी हमसे 20 लाख कम है, वहां परिवहन निगम के पास 3500 से अधिक बसें हैं। हमारे उत्तराखंड को बने हुए 24 साल हो गए हैं , लेकिन उत्तराखंड राज्य परिवहन निगम के पास अभी तक लगभग 1200 बसों का ही बेड़ा है। इसमें से परिवहन निगम के पास अपनी 950 बसें ही हैं और शेष बसें अनुबंध के आधार पर चलाई जा रही हैं। पहाड़ के जिलों की परिवहन व्यवस्था संभागीय परिवहन विभाग में तैनात एक एआरटीओ व चार सिपाही देखते हैं।

दरअसल ज्यादा से ज्यादा कमाई के चक्कर में प्राइवेट कंपनियों की बसें यही करती है, जो सोमवार को हुआ ,बस चाहे गढ़वाल मंडल की हो या कुमाऊं मंडल की। माना जा रहा है कि दुर्घटना में रामनगर की ओर आ रहे सभी लोग दीपावली अपने गांव में मनाकर लौट रहे थे , तो क्या स्थानीय पुलिस प्रशासन व ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट सो रहा था , किसी ने भी बस को चेक करने की कोशिस नहीं की ? पहाड़ की भौगोलिक परिस्थितियों में सभी जगह पर एक बार में चेकिंग करना संभव नहीं है। जिस कारण चालक मनमानी करते हैं और ओवरलोडिंग और नशाखोरी दुर्घटना का कारण बनती है। प्रदेश में 109 तहसीलें हैं। जिनमें संभागीय परिवहन विभाग के माध्यम से एसआई की तैनाती होनी है। वर्तमान में मैदानी क्षेत्रों की 31 तहसीलों में सब इंस्पेक्टर तैनात है। 78 पद अभी भी रिक्त हैं। रोडवेज को अगर छोड़ तो बाकी सभी बसों का यही हाल है, ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट और पुलिस की लापरवाही लोगों के जीवन को लील रही है

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *